प्रयागराज, संवाददाता : सनातन धर्म का डंका सात समंदर पार बज रहा है, इसका विश्व समुदाय के सामने जीता-जागता उदाहरण महाकुंभ में आए बाल और किशोर संन्यासी हैं। संगम की रेती पर अमेरिका, रूस और जर्मनी के कई बालकों और किशोरों ने सनातन से प्रभावित होकर अपनी संस्कृति और संस्कार दोनों बदल दिया है।
ऐसे किशोर संगम की रेती पर माथे पर तिलक, सिर पर मोटी चोटी और मोती-रामनानी ओड़कर प्रभु श्रीराम, भगवान शिव और कृष्ण को समझने का प्रयास कर रहे हैं।
रूस की राजधानी मास्को से आए दिमित्रो और डेनियल संन्यास धारण कर संगम में डुबकी लगाकर वेद की ऋचाओं का पाठ कर रहे हैं। वह संतों के सानिध्य में देव भाषा संस्कृत भी सीख रहे हैं, ताकि वेद के श्लोकों का शुद्ध उच्चारण कर सकें।
11 वर्षीय दिमित्रों और 13 वर्षीय डेनियल ही नहीं ऐसे 50 से अधिक विदेशी बालक और किशोर महाकुंभ के दो स्नान पर्व बीतने तक सनातन संस्कृति को पूरी तरह अपना कर संन्यासी बन चुके हैं।
कल्पवासियों के बीच की कठिन जीवन शैली
यह विदेशी किशोर संन्यासी बनकर कल्पवासियों के बीच की कठिन जीवन शैली से लेकर नागाओं के धूना रमाने की साधना तक को करीब से जानने का प्रयास कर रहे हैं। सेक्टर-19 के अपने शिविर में दिमित्रो चार बजे भोर में ही उठ जाते हैं। यह रिक्शे से हर रोज प्रातः संगम स्नान के बाद सूर्य भगवान को अर्घ्य देकर पूजा करते हैं।
सीख रहे पूजा पद्धति
वह बताते हैं कि कल्पवास कर रहे देवरिया निवासी रामायण तिवारी से वह पूजा पद्धति सीख रहे हैं। इसी अमेरिका के न्यूयार्क निवासी उद्यमी एडम्मा के पुत्र 15 वर्षीय पुत्र लियाम ने भी महाकुंभ में सनातन धर्म अपना लिया है।
संगम पर केश मुंडन कराकर लियाम ने रखी मोटी चोटी
जींस, कोट-पैंट में न्यूयार्क से आए लियाम ने अब सफेद धोती पहनने, लपेटने के साथ ही रामनामी ओढ़कर ध्यान और प्रभु का नाम जप शुरू कर दिया है। लियाम ने संगम पर केश मुंडन कराकर मोटी चोटी रख ली है।
दुर्गा चालीसा, हनुमान चालीसा के साथ ही वेद पाठ
वह भी रोज रिक्शे से संगम में डुबकी लगाने जाते हैं। वह दुर्गा चालीसा, हनुमान चालीसा के साथ ही वेद पाठ का अभ्यास कर रहे हैं। इसी तरह जापान की महामंडलेश्वर केको आईकाव्य उर्फ कैला माता के शिविर में रूस, जापान और नेपाल के बालक और किशोर संन्यासी के अंश में ध्यान-साधना में रम गए हैं।
जूना अखाड़े के महंतों, महामंडलेश्वरों के शिषिरों में 50 से अधिक विदेशी बालक और किशोर संन्यासी बनकर ध्यान-साधना कर रहे हैं। ऐसे कई किशोर संन्यासी बनने के बाद तीन पहर गंगा स्नान भी कर रहे हैं। -महंत स्वामी विद्यानंद गिरि, पंचदशनाम जूना अखाड़ा।
महाकुंभ दे रहा है एकता का संदेश, 12 राज्यों के बने पवेलियन
महाकुंभ क्षेत्र में बने 12 राज्यों के पवेलियन भारत की एकता का संदेश दे रहे हैं। यहां दादरानागर हवेली, नागालैंड, लेह, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों की संस्कृति का संगम हो रहा है। प्रदेश सरकार की ओर से देश-विदेश के लोगों को महाकुंभ का आमंत्रण भेजा गया है। राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों को आमंत्रण दिए गए। इसका असर दिखने लगा है।
सेक्टर सात में 12 राज्यों के पवेलियन बनाए गए हैं। इनमें इन राज्यों की खूबियों को प्रदर्शित किया गया। नागालैंड का चांगलो, लेह का शोंडोल लोक नृत्य समेत दादरानगर हवेली, छत्तीसगढ़, गुजरात, एमपी, आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान की संस्कृति का संगम देखने को मिल रहा है।
मध्य प्रदेश का पवेलियन जनजातीय भगोरिया नृत्य की आकर्षक प्रस्तुतियों के साथ दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर रहा है। यह मृत्य आदिवासी समुदायों की होली से पूर्व मनाए जाने वाले भगोरिया उत्सव का हिस्सा है, जिसमें रंग-बिरंगे परिधान, ढोल-मजीरे की गूंज और युवाओं का गुलाल से खेलते हुए नृत्य महाकुंभ को और भी खास बना रहा है।