नई दिल्ली,रिपब्लिक समाचार,शैफाली अरोड़ा : गुलाम नवी आज़ाद का कांग्रेस पर हमला जारी है। हाल में दिए एक साक्षात्कार में कहते है कि कांग्रेस कभी एक राष्ट्रीय पार्टी हुआ करती थी,लेकिन लोग अब सवाल यह उठाने लगे है कि कांग्रेस पार्टी राजनीतिक दल कब तक बनी रहेगी यह सवाल आने वाला वक्त बतायेगा । पार्टी की स्थित उस आखिरी मकान की तरह हो गई है जो ‘ किराएदार’ के कब्जे में है।
यहां तो हालत इसलिए खराब है कि जिसे किराएदार लोग समझ रहे थे, वह अपना पुश्तैनी हक बता रहा है। कांग्रेस पार्टी में राहुल गांधी का दबदबा चल रहा है। कांग्रेस पार्टी में बिना मुकदमे के सिर्फ फैसले सुना दिए जाते हैं, जिनके खिलाफ अपील की कोई की व्यवस्था नहीं है। एक वक्त देश में इमरजेंसी लगी थी, आज कांग्रेस में लगी है। तो अपील, दलील और वकील कुछ नहीं चलता।
सचिन पायलट ने उड़ान भरी तो काट दिए पंख
फिल्म ‘अमर प्रेम’ के एक गीत की लाइनें हैं-‘मझधार में नैया डोले तो माझी पार लगाए, माझी जो नाव डुबोए उसे कौन पार लगाए।’ कांग्रेस का वर्तमान समय में यही हाल है। जिस गांधी परिवार पर कांग्रेस की नाव को पार लगाने का जिम्मा था, वही पार्टी का बेड़ा गर्क करने में लगे है। यह बात कोई भाजपा नेता नहीं, जबकि कांग्रेसी नेता बोल रहे हैं।
50 वर्षो तक कांग्रेस में रहे गुलाम नबी आजाद बोले है कि आज की कांग्रेस में रहने की पहली शर्त है कि आपके शरीर में रीढ़ की हड्डी नहीं होना चाहिए। पार्टी में जो निर्णय लेता है, उसके पास कोई जिम्मेदारी वाला कोई पद नहीं है और जिसके पास पद है, वह फैसला लेने की हैसियत में नहीं होता । जब सोनिया गांधी का निर्णय रिजेक्ट कर दिया जाता है तो मल्लिकार्जुन खरगे की क्या बिसात है।
पार्टी की राज्य इकाइयों में लगातार बगावत आम बात हो गई है। जिस राज्य में पार्टी का जनाधार बचा हुआ है, वहां जबरदस्त गुटबाजी का बोलबाला है और जहां गुटबाजी नहीं, वहां समझिए कि पार्टी का बंटाधार हो गया है। इस समय राजस्थान की राजनीत गर्म है। सचिन पायलट से बोला गया कि तुम उड़ो।
जब सचिन पायलट ने उड़ान भरी तो पंख काट दिए गए। ऐसे में अब पायलट फड़फड़ा रहे हैं। अशोक गहलोत हाईकमान से बगावत करके भी जमे हुए हैं। अब अशोक गहलोत की सरकार ‘आटो पायलट’ मोड में है। जबकि पायलट की जरूरत नहीं है। सोचिए 2020 तक जो राज्य का उप मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष दोनों था, उसे अपनी बात सुनाने के लिए भूख हड़ताल तक करनी पड़ रही है, लेकिन इसकी सुनवाई करेगा कौन? अदालत तो बर्खास्त हो चुकी है।
कांग्रेस में किसी मुद्दे पर बहस की नहीं बची कोई गुंजाइश
गुलाम नबी आजाद की बात मानें तो सोनिया गांधी फैसला लेने की हैसियत नहीं बची है । कांग्रेस पार्टी में पिछले एक दशक से ज्यादा निर्णय सिर्फ राहुल गांधी लेते हैं। उस पर कोई भी किसी तरह का सवाल ही नहीं उठा सकता। जो सवाल उठाने की हिम्मत भी करता है, उसे मोदी का एजेंट बता दिया जाता है। तो अब कांग्रेस में दो तरह के लोग बचे हैं। एक, राहुल गांधी के जी हुजूर और दूसरे-मोदी के एजेंट। पार्टी में किसी मुद्दे पर बहस की कोई गुंजाइश नहीं बची है।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री नहीं बन पाए टीएस सिंह देव कह रहे हैं कि उनके बोलने पर रोक है। कर्नाटक में चुनाव से पहले ही डीके शिवकुमार ने मान लिया है कि उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाएगा। इसलिए उन्होंने नया दांव चला है कि दलित मुख्यमंत्री होना चाहिए। उसके लिए सबसे योग्य मल्लिकार्जुन खरगे हैं। मतलब स्पष्ट है कि सिद्धरमैया को दोबारा मौका न मिलने पाए।
कांग्रेस में सारे जी हुजूरियों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली हुई है। कांग्रेस छोड़ने वालों को गद्दार कहने की प्रतियोगिता में शामिल होने की। तो कल जिन गुलाम नबी आजाद ने अपना खून पसीना बहाया था, आज उनके नाम से लोगो को घृणा होने लगी है। राहुल राज से पहले यह प्रक्रिया धीरे गति से चल रही थी।
अब तेज गति से चलने लगी है। निश्चिंत रहिए कि लोकसभा चुनाव के बाद राहुल कांग्रेस से कई और कांग्रेस पार्टिया निकलेंगी। फिर सारे मोदी एजेंट पार्टी से बाहर हो जाएंगे। बचेंगे सिर्फ जी हुजूर वाले । जी हुजूर वाले राहुल को पीएम बनने के ख्वाब दिन में दिखाएंगे।
संवादहीनता राहुल गांधी की सबसे बड़ी कमजोरी
मुझे याद है कि 1999 में शरद पवार ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस छोड़ दिया था । जबकि , कुछ महीने में ही सिद्धांत पर सत्ता भारी पड़ गई और दोनों ने मिलकर सरकार बना लिया । सोनिया का तो वह कुछ नहीं बिगाड़ पाए, लेकिन अब मौका मिला है राहुल गांधी को धोबी पछाड़ मारने का, तो मार रहे हैं। पहले कहा यह मानो कि सावरकर देश भक्त थे या फिर चुप रहो।
फिर कहा अदाणी को निशाना बनाया जा रहा है, जेपीसी की मांग ठीक नहीं, मोदी की डिग्री का मुद्दा उठाना गलत और संसद को ठप करना बिल्कुल गलत। कुल मिलाकर यह कि राहुल गांधी ने जो कुछ कहा सब गलत। राहुल से कुछ नहीं बोला जाता है । यह कहावत राहुल गाँधी पर फिट बैठती है ‘जबर मारे रोने न दे।’
राहुल गांधी का हालत देखिए। मोदी को गाली देने के चक्कर में एक बार सुप्रीम कोर्ट से माफी मांगनी पड़ी। जिला अदालत में माफी मांगने के चककर में हेकड़ी दिखाई तो लोकसभा की सदस्यता तक चली गई। इस देश के लोग भी इतने बेदर्द हैं कि राहुल गाँधी के लिए सड़क पर भी नहीं उतरे ।
कांग्रेस के इतिहास में आज तक ऐसा कोई राष्ट्रीय अध्यक्ष या सबसे प्रभावशाली नेता नहीं हुआ, जिसका दूसरे दलों को तो छोड़िए अपनी ही पार्टी के नेताओं से भी संवाद न हो। पार्टी में जिनसे संवाद था वे एक-एक करके पार्टी छोड़कर जा रहे हैं। संवादहीनता राहुल गांधी की सबसे बड़ी कमजोरी है। पार्टी के अंदर भी और बाहर भी।