प्रयागराज, संवाददाता : मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह प्रकरण को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। हाई कोर्ट ने सर्वे करने की मंजूरी दे दी है। एक तरफ हिंदू पक्ष की याचिका को कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है। वहीं दूसरी तरफ ईदगाह कमेटी और वक्फ बोर्ड की दलीलों को कोर्ट ने खारिज कर दिया है। इस के पहले हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन ने पक्षों को सुनने के बाद 16 नवंबर को आदेश सुरक्षित रख लिया था।
जन्मभूमि-ईदगाह प्रकरण में हाईकोर्ट ने 16 नवंबर को हुई सुनवाई के बाद सभी 18 केसों से संबंधित वादकारी और प्रतिवादियों को व्यक्तिगत रूप से न्यायालय में उपस्थित रहने का आदेश दिया था। श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति न्यास के अध्यक्ष महेंद्र प्रताप सिंह ने कहा था कि सेशन कोर्ट में दाखिल 18 वादों की फाइलों को हाईकोर्ट ने अपने अधीन सुनवाई के लिए ले रखा है।
हिन्दू पक्ष ने आरोप लगाया था कि ईदगाह पक्ष जन्मभूमि की स्थापत्य कला के साथ खिलवाड़ कर साक्ष्यो को नष्ट कर रहा है। इस के पहले ही साक्ष्य नष्ट कर दिए जाएं, हाईकोर्ट से मांग की जाएगी कि ज्ञानवापी की तर्ज पर जन्मभूमि का भी सर्वे कराने का आदेश देने की कोर्ट से अपील की जाएगी।
कितना पुराना है विवाद
शाही ईदगाह मस्जिद मथुरा शहर में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर से जुडी हुई है। 12 अक्तूबर 1968 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट के साथ एक समझौता किया। इस समझौते में 13.37 एकड़ जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों के बने रहने की बात है।
पूरा विवाद इसी 13.37 एकड़ जमीन को लेकर ही है। इस जमीन में से 10.9 एकड़ जमीन श्रीकृष्ण जन्मस्थान के पास है, और 2.5 एकड़ जमीन शाही ईदगाह मस्जिद के पास है। इस समझौते के अनुसार मुस्लिम पक्ष ने मंदिर के लिए अपने कब्जे की कुछ जगह छोड़ी और मुस्लिम पक्ष को बदले में पास में ही कुछ जगह दी गई थी। अब हिन्दू पक्ष पूरी 13.37 एकड़ जमीन पर कब्जे की मांग कर रहा है।
ये है श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह का इतिहास
इतिहास में ऐसा कहा जाता है कि औरंगजेब ने श्रीकृष्ण जन्म स्थली पर बने प्राचीन केशवनाथ मंदिर को तोड़ दिया था और उसी जगह 1669-70 में शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण कराया था। 1770 में गोवर्धन में मुगलों और मराठाओं में जंग हुई और मराठा जीते। मराठाओं ने जीतने के बाद फिर से मंदिर का निर्माण कराया। 1935 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 13.37 एकड़ की भूमि वाराणसी के राजा कृष्ण दास को आवंटित कर दी थी । 1951 में श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ने ये भूमि अधिग्रहीत कर लिया।