लखनऊ,अमित चावला : रामकृष्ण मठ लखनऊ में श्री श्री जगन्नाथ देव की रथ यात्रा उत्सव बड़े ही धार्मिक माहौल में सम्पन्न श्री श्री दुर्गा देवी की काठामो पूजा एवं श्री श्री जगन्नाथ देव की रथ यात्रा उत्सव बड़े ही धार्मिक माहौल में पारम्परिक एवं पूर्ण रीतिरिवाजो के साथ विधिवत अनुष्ठानिक प्रक्रिया रामकृष्ण मठ, निराला नगर, लखनऊ में मनाई गयी।
स्वामी मुक्तिनाथानन्द ने किया वैदिक भजन का पाठ
उत्सव का शुभारम्भ श्री श्री ठाकुर की मंगल आरती एवं प्रार्थना के साथ हुई तत्पश्चात वैदिक मंत्रोच्चार एवं भगवद् गीता का पाठ एवं श्री जगन्नाथअष्टकम् का गायन स्वामी इष्टकृपानन्द के नेतृत्व में हुआ तत्पश्चात एक (ऑनलाइन) सत् प्रसंग रामकृष्ण मठ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानन्द द्वारा हुआ।
रामकृष्ण मठ के मुख्य मंदिर में साधुओं द्वारा श्री श्री ठाकुर की पूजा स्वामी इष्टकृपानन्द जी के द्वारा हुई। तदोपरान्त दुर्गा मण्डप में स्वामी मुक्तिनाथानन्द द्वारा वैदिक भजन (शांति मंत्र, नारायण उपनिषद, नारायण शुक्तम, दुर्गा सूक्तम और देवी सूक्तम) का पाठ हुआ तत्पश्चात रामकृष्ण मठ के स्वामी परागानन्द द्वारा भजन गायन हुआ एवं उपस्थित सभी भक्तगणों ने त्रिदेवो को पुष्पांजलि अर्पित की तदुपरान्त उपस्थित भक्तगणों को प्रसाद वितरण हुआ। सायंकाल श्री श्री ठाकुर जी की संध्या आरती के पश्चात हनुमान चालीसा का पाठ हुआ।
श्री श्री जगन्नाथ देव की रथ यात्रा के अवसर पर रामकृष्ण मठ, निराला नगर, लखनऊ में आयोजित प्रवचन में स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी ने बताया कि हमारे परम्परा में रथ यात्रा एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है कारण यह माना जाता है कि रथ में आसीन प्रभु जगन्नाथ को दर्शन करने से जीव मुक्त हो जाता है उपनिषद् में कहा गया कि ’’रथे च वामनं पूर्नजन्म दृष्टा न विधते्।’’
श्री माँ सारदा देवी एक बार पावन रथ यात्रा के अवसर पर पुरी में उपस्थित अनगिनत नर नारीयों को देखते हुये आनन्दाश्रु विर्सजन किया यह सोचते हुये कि प्रचलित प्रथा अनुसार वे सब दर्शनार्थी मुक्त हो जायेगें। लेकिन बाद में उन्हें अनुभव हुआ कि र्सिफ दो एक मनुष्य ही मुक्त हांगें जिनका मन वासना से मुक्त है। कठोपनिषद में यह मानव शरीर को एक रथ माना गया है जिसके भीतर विराजमान आत्मा उनका मालिक है। हमारे इन्द्रियां उनके घोडें जैसे हैं जिसको मनरूपी लगाम से खींचा जाता है।
मन, बुद्धि, इन्द्रीयाँदि नियंत्रण में रखते हुये आगे बढ़ना
हमारे बुद्धि इसका चालक है। अर्थात हम अपने शरीर के माध्यम से मनुष्य जीवन का लक्ष्य ईश्वर तक पहुॅचने चाहते है तो आपना मन, बुद्धि, इन्द्रीयाँदि नियत्रण में रखते हुये आगे बढ़ना पडेगा तभी हम आखिर में रथ (देह) के भीतर विराजमान ’’वामन’’ भगवान को प्रत्यक्ष कर सकेगें। यही रथयात्रा का तातपर्य है।
स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी महाराज ने यह भी बताया कि आज के दिन पुरी में श्री भगवान जगन्नाथ रूप में अपने अग्रज बलराम एवं बहिन सुभद्रा को लेकर तीन अलग-अलग रथ में यात्रा करते हुये साल में सिर्फ एक बार एक दिन के लिए मंदिर से 3 किलोमीटर दूरवर्ती गुडिंचा मंदिर तक जाकर वहाँ 9 दिन के लिए निवास करते है ताकि आम जनता उनके नजदीक से दर्शन व आराधना कर सके।
जगन्नाथ के रथ के नाम है नन्दीघोष या कपिध्वज जो कि 206 लकड़ी के टुकड़ों से बनता है। हमारें मनुष्य शरीर में भी 206 हड्डीयां होती हैं वैसे ही यह रथ के सोलह चक्के होते हैं जो हमारे शरीर में विद्यमान 10 इन्द्रियां (चछु, कर्ण, हाथ-पैर आदि) और 6 रिपु (काम, क्रोध आदि) के सूचक है।
तीन रथ में पहले बलराम उनके बाद सुभद्रा एवं सबसे आखिरी में भगवान जगन्नाथ स्वयं रहते हैं। बलराम गुरूतत्व के रूप में पहले रहते है उसके पीछे सुभद्रा भक्तितत्व में रहती है अथार्त पहले गुरू कृपा चाहिए ताकि हमारें जीवन में भक्ति का आगमन हो जाये। जिसके माध्यम से हम अखिर में परमप्रभु को प्राप्त कर सकें। प्रवचन के उपरान्त स्वामी परागानन्दजी द्वारा भक्तिगीत प्रस्तुत किया गया।
इस अवसर पर रामकृष्ण मठ में आगामी दुर्गा पूजा के लिए दुर्गा प्रतिमा के कठामो पूजा भी स्त्रोत पाठ एवं भजन कीर्तन के साथ हुई थी। कार्यक्रम के अन्त में उपस्थित श्रद्धालुओं एवं भक्तगणों के मध्य प्रसाद वितरण के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।