Chandrayaan-3 : चंद्रयान-3 ने चंद्रमा की सतह को चूम कर अंतरिक्ष विज्ञान में लिखी सफलता की नई परिभाषा

CHANDRAYAN-3 (4)

बेंगलुरु, एजेंसी : इसरो के महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-3 के लैंडर माड्यूल (एलएम) ने बुधवार शाम चंद्रमा की सतह को चूम कर अंतरिक्ष विज्ञान में सफलता की एक नई परिभाषा लिखी। विज्ञानियों के अनुसार इस अभियान के अंतिम चरण में सारी प्रक्रियाएं पूर्व निर्धारित योजनाओं के अनुरूप ठीक वैसे ही पूरी हुईं जैसा तय किया गया था। लैंडिंग के कुछ समय बाद इसरो के मिशन आपरेशन कांप्लेक्स के साथ लैंडर विक्रम का संचार संपर्क स्थापित हो गया। इसरो ने उतरने के दौरान विक्रम के कैमरे से ली गई तस्वीरें जारी कर कहा कि लैंडर ने उतरने के लिए अपेक्षाकृत सपाट सतह का चयन किया है।

रोवर प्रज्ञान भी लैंडर से निकला बाहर

आइएएनएस के अनुसार, देर रात रोवर प्रज्ञान भी चंद्रयान-3 लैंडर से बाहर निकल रैंप पर आ चुका था। अंतरिक्ष में निजी कंपनियों के नियामक इनस्पेस के चेयरमैन पवन के गोयनका ने फोटो के साथ यह सूचना इंटरनेट मीडिया मंच एक्स पर साझा किया। इस सफलता को केवल इसरो के विज्ञानी, भारत का हर आम और खास व्यक्ति ही टीवी स्क्रीन पर नज़र गड़ाए देख रहा था, बल्कि दुनिया भर के कई देशों में भी इस खाश पल को देखा गया।

रोसकोसमोस ने भारत को दी बधाई

ब्रिक्स सम्मेलन में प्रतिभाग कर रहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी जोहानिसबर्ग से वर्चुअली इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बने और सफल लैंडिंग के बाद तिरंगा लहराकर हर्ष व्यक्त किया। अब तक अमेरिका, तत्कालीन सोवियत संघ (रूस) और चीन ने चंद्रमा की सतह पर लैंडर उतारे हैं। रूस ने दक्षिणी ध्रुव पर उतरने के लिए लूना-25 यान भेजा था जो बीते रविवार इंजन बंद होने से क्रैश हो गया। अब चंद्रयान-3 की सफलता पर रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रोसकोसमोस ने भारत को बधाई दी है।

ऐसे हुई साफ्ट लैंडिंग

लैंडिंग प्रक्रिया के अंतिम 20 मिनट को इसरो ने भय वाला समय बताया था। इसमें भी अंतिम 17.04 मिनट बेहद तनाव भरे रहे। बेंगलुरु के पास ब्यालालू स्थित अपने इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क से इसरो ने लैंडिंग (Soft Landing) के तय समय से करीब दो घंटे पहले जरूरी कमांड भेजीं। इसके बाद चांद की सतह से करीब 30 किमी की ऊंचाई पर लैंडर पावर ब्रेकिंग चरण में पहुंचा।

शाम 5.44 बजे इसके उतरने की पावर डिसेंट प्रक्रिया 25 किमी की ऊंचाई से आरंभ हुई। इसरो अधिकारियों के अनुसार चांद की सतह से 6.8 किलोमीटर की दूरी पर पहुंचने पर लैंडर के केवल दो इंजन का प्रयोग हुआ और बाकी दो इंजन बंद कर दिए गए। जिसका उद्देश्य सतह के और करीब आने के दौरान लैंडर को ‘रिवर्स थ्रस्ट’ (सामान्य दिशा की विपरीत दिशा में धक्का देना, ताकि लैंडिंग के बाद गति कम की जा सके) देना था।

एक चंद्र दिवस तक होगा अध्ययन

इसरो के मुताबिक चंद्रमा की सतह और उसके आसपास के वातावरण का अध्ययन करने के लिए लैंडर और रोवर (प्रज्ञान) के पास एक चंद्र दिवस (पृथ्वी के लगभग 14 दिन के बराबर) का समय है । जबकि विज्ञानियों ने दोनों के एक और चंद्र दिवस तक सक्रिय रहने की संभावनाओं से इन्कार नहीं किया है। लैंडर माड्यूल में कुल पांच पेलोड लगे हैं। इसमें नासा का भी पेलोड है। लैंडर में लगे पेलोड से चांद की सतह का अध्ययन किया जाएगा। इसमें भेजे गए तीन पेलोड रंभा-एलपी, चेस्ट और इल्सा हैं।

इनमें से एक चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की मिट्टी और चट्टान का अध्ययन करेगा। दूसरा पेलोड रासायनिक पदार्थों और खनिजों का अध्ययन करेगा और देखेगा कि इनका स्वरूप कब-कितना बदला है ताकि उनका इतिहास जाना जा सके। तीसरा पेलोड ये देखेगा कि चंद्रमा पर जीवन की क्या संभावना है और पृथ्वी से इसकी कोई समानता है भी कि नहीं। रोवर कुछ दूरी तक चलकर चांद की सतह का अध्ययन करेगा।

चार पहियों वाले लैंडर और छह पहियों वाले रोवर का कुल वजन 1,752 किलोग्राम है। लैंडिंग को सुरक्षित बनाने के लिए लैंडर में कई सेंसर लगाए गए। इनमें एक्सीलरोमीटर, अल्टीमीटर, डाप्लर वेलोसीमीटर, इनक्लिनोमीटर, टचडाउन सेंसर और कैमरे शामिल हैं।

इसलिए अहम है दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र

चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्र पर्यावरण और उनसे होने वाली कठिनाइयों के कारण बहुत अलग भूभाग हैं और इसलिए अभी अज्ञात बने हुए हैं। विज्ञानियों का मानना है कि इस क्षेत्र के हमेशा अंधेरे में रहने वाले स्थानों पर पानी की प्रचुर मात्रा हो सकती है। इसी कारण चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरना बहुत अहम माना जाता है। यहां जमी बर्फ भविष्य के अभियानों के लिए आक्सीजन, ईंधन और पेयजल मिलने की संभावना बनी हुई है।

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