जागतिक आनंद कभी स्थायी नहीं होता है – स्वामी मुक्तिनाथानंद

LUCKNOW-NEWS (3)

लखनऊ, अमित चावला : बुधवार के प्रातः कालीन सत् प्रसंग में रामकृष्ण मठ लखनऊ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने बताया कि यद्यपि हम आनंद बिना नहीं रह सकते हैं, कारण हम सब आनंद की संतान हैं, तभी यह याद रखना चाहिए कि जागतिक आनंद से हम यथार्थ आनंदित नहीं हो सकते हैं।

तीन प्रकार का होता है सुख

स्वामी जी ने बताया कि सुख तीन प्रकार का होता है कारण हमारा मन त्रिगुणात्मिका है – तामसिक सुख जो निद्रा आलस्य आदि में मिलता है उसमें हमारा मन अचेतन रहता है इसलिए वो इतना उपयोगी नहीं है राजसिक सुख को ही सुख माना जाता है जहां पर नाना प्रकार विषय के साथ हमारी इंद्रियों की संयुक्ति होती है। विषय के साथ इंद्रियों का स्पर्श जनित सुख को ही सुख माना जाता है लेकिन वो स्थायी नहीं होता है इसका कारण श्रीमद्भगवद्गीता (18:38) में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कहा –

विषयेन्द्रियसंयोगाद्यत्तग्रेऽमृतोपमम्।

परिणामे विषमिव तत्सुखं राजसं स्मृतम्।।

अर्थात जो सुख विषय और इंद्रियों के संयोग से होता है, वह पहले – भोगकाल में अमृत के तुल्य प्रतीत होने पर भी परिणाम में विष के तुल्य है; इसलिए वह सुख राजस कहा गया है।

उन्होंने बताया कि यद्यपि राजस सुख प्रसिद्ध है तथापि इंद्रियों की सीमाबद्धता के कारण वो हमें असीम सुख देने में असमर्थ है। जागतिक सुख में हमें अंत में दुःख ही मिलता है।
इसका कारण बताते हुए श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता( 5:22) में कहा –

ये हि संस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते।।

आद्यन्तवन्तः कौन्तेय न तेषु रमते बुध:।।

अर्थात जो ये इंद्रिय तथा विषयों के संयोग से उत्पन्न होने वाले सब भोग हैं, यद्यपि विषयी पुरुषों को सुख रूप भासते हैं तो भी दुःख के ही हेतु हैं और आदि- अंत वाले अर्थात अनित्य हैं। इसलिए हे अर्जुन! बुद्धिमान विवेकी पुरुष उनमें नहीं रमता।

शारीरिक सुख नहीं होता है स्थायी

अर्थात इस शरीर के माध्यम से हम जो सुख लेना चाहते हैं वो सुख हमें सदैव मिलता भी नहीं है एवं यह दुःख का कारण भी बनता है। यद्यपि शारीरिक सुख स्थायी नहीं होता है तथापि शरीर व इंन्द्रियों के प्रति हमारी सहजात आसक्ति के कारण इस सुख को हम वर्जन नहीं कर सकते हैं।

स्वामी मुक्तिनाथानंद ने बताया अतएव हमें आनंद पाने के लिए जागतिक सुख छोड़कर पारमार्थिक सुख का संधान करना चाहिए। शौच के माध्यम से हमें धीरे-धीरे इन्द्रियासक्ति त्याग करते हुए जीवन को ईश्वर केंद्रित कर लेना चाहिए एवं भगवान के चरणों में आंतरिक प्रार्थना करना चाहिए ताकि उनकी कृपा से हम स्वस्थ जीवन जी सके एवं इस जीवन में ही ईश्वर को प्रत्यक्ष करते हुए जीवन सफल कर सके।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

India’s cricketers will score 200 against New Zealand Designs of Mehendi for Karwa Chauth in 2024 Indian Women’s T20 World Cup Qualifiers Simple Fitness Advice for the Holidays Top 5 Business Schools in the World