नई दिल्ली, एजेंसी : केंद्र की वन्यजीव समिति ने चीन से लगती वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास पूर्वी लद्दाख में सैनिकों, गोला-बारूद भंडारण और संचार नेटवर्क के लिए बुनियादी निर्माण के कई प्रस्तावों को मंजूरी दे दी गई है।
सैनिकों के तैनाती में आएगी तेजी
रक्षा मंत्रालय के अनुसार, चांगथांग के अधिक ऊंचाई वाले शीत मरुस्थल वन्यजीव अभयारण्य और काराकोरम नुब्रा श्योक वन्यजीव अभयारण्य में बनाए जाने वाले नए बुनियादी ढांचे का उद्देश्य गोला-बारूद की पहुंच में तेजी लाना और त्वरित अभियानगत तैनाती सुनिश्चित करना है।
भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में 54 माह तक सैन्य गतिरोध रहा, जो मई 2020 में गलवन घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प के बाद शुरू हुआ था। यह गतिरोध पिछले वर्ष अक्टूबर में समाप्त हुआ था।
दोनों अभयारण्य दुर्लभ वन्यजीवों के निवास स्थान
21 दिसंबर को केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव की अध्यक्षता में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की स्थायी समिति की बैठक के दौरान इस रणनीतिक बुनियादी ढांचे के प्रस्तावों पर चर्चा की गई। प्रस्ताव के तहत आने वाले दोनों अभयारण्य दुर्लभ वन्यजीवों के निवास स्थान हैं। बुनियादी ढांचे के लिए निर्धारित स्थानों में कोई पेड़-पौधा नहीं है, लेकिन वे संरक्षित क्षेत्रों की श्रेणी में आते हैं। इससे वे वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की धारा 29 के अधीन हो जाते हैं।
वन्यजीवों के आवासों को नुकसान न पहुंचे
रक्षा मंत्रालय को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है कि इस क्षेत्र को कोई नुकसान न हो और वन्यजीवों के आवासों पर परियोजना के प्रभाव को कम करने के लिए नियमों का अनुपालन किया जाए। अब तक स्थायी समिति ने चांगथांग के अधिक ऊंचाई वाले शीत मरुस्थल वन्यजीव अभयारण्य में 2,967.63 हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करते हुए 107 प्रस्तावों और काराकोरम नुब्रा श्योक वन्यजीव अभयारण्य में 24,625.52 हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करते हुए 64 प्रस्तावों को स्वीकृति दी है।