प्रयागराज, शिव सिंह : सभी दशनामी शैव अखाड़ों की अपनी अलग कोतवाली है। इनमें बाकायदा कोतवाल तैनात रहते हैं। इनके जिम्मे छावनी की आंतरिक सुरक्षा होती है। अखाड़े के नागा समेत अन्य साधुओं को नियंत्रित करने का काम यही कोतवाल करते हैं। अखाड़ों के अपने कानून भी हैं।
नियम तोड़ने वाले को सजा दी जाती है। कई अजब-गजब सजाएं भी हैं। हालांकि, गंभीर अपराध पर अखाड़े से निष्कासन तक का विधान है। अखाड़ों में अपना आंतरिक विवाद कोर्ट कचहरी लेकर जाने का रिवाज नहीं है।
विवाद मिल बैठकर सुलझाए जाते हैं। धर्मध्वजा के नीचे ईष्ट देव की कुटिया स्थापित होने के साथ ही छावनी में भी कोतवाली बन जाती है। छावनी की सुरक्षा के लिए अलग-अलग कोतवालों की तैनाती होती है। निरंजनी अखाड़े के महंत महेंद्रानंद के मुताबिक नागा संन्यासी ही कोतवाल बन सकते हैं।
किसी को दंड दे सकते हैं कोतवाल
खास तौर से उनको चांदी से मढ़ा दंड दिया जाता है। इसके पास रहते कोतवाल किसी को दंड दे सकते हैं। छावनी में गड़बड़ी करने वाले इनके पास लाए जाते हैं। मामूली गलती पर छोटा दंड दिया जाता है अगर आरोप गंभीर हैं तब उसकी पेशी चेहरा मोहरा में होती है। यहां उसे अपनी सफाई पेश करनी पड़ती है। पंच ही उसके बारे में फैसला करते हैं।
गंभीर अपराध पर अखाड़े से निकाल दिया जाता है बाहर
अगर किसी पर विवाह करने, दुष्कर्म करने, आर्थिक अपराध जैसे आरोपों की पुष्टि होती है तब उसे अखाड़े से बाहर निकाल दिया जाता है। अखाड़े का अनुशासन तोड़ने पर सजा इस तरह की दी जाती है, जिससे उसे अपनी भूल का अहसास हो सके।
अधिकांश सजा आर्थिक न होकर धार्मिक होती है। महानिर्वाणी अखाड़े के कोतवाल दिगंबर गणेश पुरी एवं अवधेश गिरि का कहना है कि समय-समय पर कोतवालों को भी बदला जाता है।
अजब-गजब सजाएं
- कोतवाल की मौजूदगी में गंगा में 108 डुबकी
- अखाड़े में सबके पास जाकर उनको दातून देना
- छावनी के भीतर एक सप्ताह तक सफाई करना
- अपने गुरु भाई के यहां बर्तन साफ करना
अग्नि के समक्ष आरंभ हुई कठिन साधना
उधर, जूना अखाड़े में शनिवार से नागा संस्कार आरंभ हुए। दोपहर को 900 से अधिक साधुओं ने गंगा स्नान के पश्चात कठिन साधना आरंभ की। वस्त्र त्याग करके सिर्फ अधोवस्त्र में छावनी लौटे। धर्मध्वजा के नीचे अग्नि के समक्ष बैठकर तपस्या आरंभ की। आधी रात के बाद पंच गुरु की मौजदूगी में उनके पंच संस्कार पूरे कराए जाएंगे। 48 घंटे लंबी क्रियाओं के बाद यह सभी जूना अखाड़े के नागा परिवार में शामिल हो जाएंगे।
सबसे पहले गंगा में 108 डुबकी लगाई
जूना अखाड़ा छावनी में शनिवार दोपहर वैदिक मंत्रोच्चार के साथ संस्कार आरंभ हुए। भगवान दत्तात्रेय एवं हर-हर महादेव के जयकारे लगाते हुए सभी साधुओं को गंगा किनारे ले जाया गया। इनमें हर आयुवर्ग के साधु शामिल हुए। सबसे पहले गंगा में 108 डुबकी लगाई। इसके बाद सभी का क्षौर कर्म के साथ जनेऊ संस्कार हुआ। यहां से सभी वापस छावनी आए। गुरु कुटिया के समक्ष धर्मध्वजा के नीचे बने घेरे के बीच जल रही अग्नि के समक्ष उनकी तपस्या आरंभ हुई।
इस तपस्या के माध्यम से इंद्रियों को वश में करने के साथ अपनी दुर्बलताओं को अग्नि में अर्पित करना होता है। बिना अन्न-जल ग्रहण किए रात भर यह कठिन साधना करनी होगी। तड़के दोबारा सभी को गंगा तट ले जाकर अन्य संस्कार पूरे कराए जाएंगे। यहां पांच गुरु मौजूद होंगे। उनको कंडी, भगवा वस्त्र, लंगोटी, भभूत देने के साथ ही शिखा मुंडित करेंगे। आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि की मौजदूगी में यह संस्कार होंगे। श्रीमहंत मोहन गिरि के मुताबिक विजया हवन के लंगोटी खोलकर नागा बनाया जाएगा।
दीक्षा से पहले स्वयं का करना होगा पिंडदान
हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद ही पिंडदान का विधान है लेकिन संन्यास दीक्षा लेने की प्रक्रिया में उनको पहले खुद का पिंडदान करना होता है। पिंडदान करने के साथ ही पितृऋण से मुक्त होने के लिए भी वह पिंडदान करेंगे। इसके साथ ही उनके सारे सामाजिक दायित्व भी खत्म हो जाएंगे। इसके बाद वह सामाजिक जीवन की ओर नहीं लौट सकेंगे।