नई दिल्ली,रिपब्लिक समाचार,संवाददाता : चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को हर वर्ष महावीर जयंती मनाई जाती है। आज के ही दिन जैन धर्म के अनुयायी 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म हुआ था। इस बार यह पर्व 4 अप्रैल अर्थात आज मनाया जा रहा है। भगवान महावीर का जन्म लगभग 599 ईसा पूर्व बिहार के कुंडलपुर के राज घराने में हुआ था।
क्षत्रिय वंश में जन्मे थे भगवान महावीर
जैन धर्म में तीर्थंकर का अर्थ है उन 24 दिव्य महापुरुषों से है। इन महापुरुषो ने अपनी तपस्या से आत्मज्ञान को प्राप्त किया और अपनी इंद्रियों और इच्छाओं पर पूर्ण रूप से विजय प्राप्त कर ली। इस दौरान भगवान महावीर ने दिगंबर को अपना लिया, जो भी दिगंबर मुनि वस्त्र नहीं धारण करते है क्योकि वो आकाश को ही अपना वस्त्र मानते हैं।
लगभग 600 वर्ष पूर्व कुण्डलपुर में क्षत्रिय वंश में पिता सिद्दार्थ और माता त्रिशला के यहां चैत्र शुक्ल तेरस को वर्धमान का जन्म हुआ था । वर्धमान को महावीर के अलावा वीर,अतिवीर और सन्मति के नाम से भी जाना जाता है। भगवान महावीर ने सम्पूर्ण समाज को सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाया। भगवान महावीर के प्रारम्भिक तीस वर्ष राजसी वैभव और विलास से दूर रहे। उसके बाद बारह वर्ष घनघोर जंगल में तप किया।
यही भगवान महावीर का ‘ जीयो और जीने दो ‘ का सिद्धांत है। उन्होंने न केवल इस जगत को मुक्ति का सन्देश दिया, अपितु मुक्ति की सरल और सच्ची राह भी दिखाई । आत्मिक और शाश्वत सुख की प्राप्ति हेतु सत्य , अहिंसा , अपरिग्रह , अचौर्य और ब्रह्मचर्य जैसे पांच मूलभूत सिद्धांत भी बताए । इन्हीं सिद्धांतों को अपने जीवन में उतारकर भगवान महावीर ‘ जिन ‘ कहलाए ।
जिन से ही ‘जैन’ बना है अर्थात जो काम,तृष्णा ,इन्द्रिय व भेद जयी है वही जैन है। भगवान महावीर ने अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर था इसीलिए जितेंद्र कहलाए। भगवान महावीर का मानना है कि मात्र शरीर को कष्ट देना ही ही हिंसा नही माना बल्कि मन , वचन व कर्म से भी किसी को आहत करना उनकी दृष्टि से हिंसा ही है। क्षमा के सन्दर्भ में भगवान महावीर कहते हैं- ‘मैं सब जीवों से क्षमा चाहता हूँ