लखनऊ,रिपब्लिक समाचार,अमित चावला : चिन्मय मिशन लखनऊ के तत्त्वावधान में गीता ज्ञान यज्ञ के द्वितीय दिवस में प्रवचन करते हुए स्वामी अभेदानन्द, आचार्य चिन्मय मिशन, साऊथ अफ्रीका ने कहा कि हमारे प्रारब्ध से जीवन में शरीर इत्यादि पर एक सीमा बन जाती है। जीवन में हम अनिश्चितताओं के मध्य रहते हैं। नित्य नयी विविधताओं से घिरे रहते हैं। परन्तु महाभारत के पात्र अर्जुन सबसे अधिक निश्चिन्त है। दुर्योधन के कहने से भीष्म पितामह प्रतिज्ञा करते हैं कि कल मैं पांडव सेना को ध्वस्त कर दूंगा।
बाहर की स्थिति सीमा में रहती है, परन्तु हमारे भीतर अन्तःकरण का विशाल क्षेत्र है जिसमें हमे सुधार की पूरी स्वतंत्रता है। भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से पूछते हैं तुमने पितामह की प्रतिज्ञा सुनी? अर्जुन कहता है हां माधव सुना है। फिर तुम कैसे निश्चिन्त सो रहे हो ? अर्जुन ने कहा मेरा कृष्ण जग रहा है तो फिर मुझे क्यूँ चिंता हो? हमारे जीवन में भी ऐसा विश्वास भरोसा परमात्मा पर होना चाहिए जैसा अर्जुन का है। तब हमारा जीवन भी समस्या रहित शांत एवं निर्द्वन्द हो जाएगा।
जिसका जीवन धार्मिक नहीं है वह अशांत रहेगा कर्म को छोड़ना नहीं है। कर्मफल बिना मिले कर्म शांत नहीं होता। हमारे अन्तःकरण में वह कर्म बहुत काल तक रहता है। गलत कर्म करेंगे तो फल अच्छा कैसे मिलेगा ? दूसरा हमारे जीवन में संदेह हो जाए तो भी हम अशान्त दुःखी रहेंगे।
7 मई तक नित्य सांय 6:30 से 8.00 बजे तक यह ६ दिवसीय ज्ञान यज्ञ अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान में आयोजित है।
गीता ज्ञान यज्ञ में आए विभिन प्रांतों के साधक के साथ चिन्मय मिशन की अध्यक्षा श्रीमती ऊषा गोविंद प्रसाद, उपाध्यक्ष नीलम बजाज आदि प्रमुख गणमान्य साधकों ने गंभीरता के साथ आचार्य जी की विलक्षण आध्यात्मिक विवेचना का लाभ लिया।