पुतिन का ‘संयुक्त रूस’ का सपना

Putin's-dream-of-'United-Russia'

REPUBLIC SAMACHAR || रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन पर हमले से पहले राष्ट्र के नाम संबोधन में रूसी साम्राज्य की चर्चा की थी। ऐसे में माना जाता है कि वे रूस का दायरा विश्व युद्ध-1 से पहले तक पहुंचाना चाहते हैं।

विश्व युद्ध से पहले 17 देशों तक फैला था रूसी साम्राज्य का दायरा

पहले तक रूस का दायरा कितना बड़ा था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक समय रूसी साम्राज्य 17 देशों तक फैला था। 1917 से पहले तक रूसी साम्राज्य में रूस, यूक्रेन, बेलारूस, मॉलदोवा, फिनलैंड, अर्मेनिया, अजरबैजान, जॉर्जिया, (सेंट्रल एशिया) काजखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, (बाल्टिक देश) लिथुआनिया, लातविया, एस्टोनिया, पोलैंड के अलावा तुर्की के कुछ हिस्से भी शामिल थे।

विश्व युद्ध के बाद घटते-बढ़ते रहे रूसी साम्राज्य के सदस्य देश

हलांकि, पहले विश्व युद्ध के बाद रूस का दायरा घटना शुरू हो गया। 1917 में रूस में हुए आंदोलन के बाद रूस में राजशाही का अंत हो गया। इसके बाद रूस ने फिनलैंड, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, यूक्रेन, जॉर्जिया, आर्मेनिया और अजरबैजान को 1918 में गंवा दिया। लेकिन 1922 में रूस ने एक बार फिर एक संधि कर यूक्रेन, बेलारूस, जॉर्जिया, अर्मेनिया और अजरबैजान को संगठित कर लिया। यहां से रूसी साम्राज्य छोटा होकर सोवियत संघ बन गया।

दूसरे विश्व युद्ध में उभरा सोवियत संघ, बढ़ी सदस्यों की संख्या

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान रूस ने एक बार फिर अपने पुराने हिस्सों को मिलाने की कोशिश की। सोवियत ने 1939 में पोलैंड में सेना भेजकर कब्जा किया, जबकि 1939 के अंत में फिनलैंड पर कब्जा जमा लिया। इन्हें बाद में आजाद भी कर दिया गया। लेकिन 1940 में ही सोवियत सेनाओं ने बाल्टिक देश- लिथुआनिया, लातविया और एस्टोनिया को अपने कब्जे में ले लिया। 

कहां तक लगती थी सोवियत संघ की सीमाएं?

सोवियत संघ जिसका केंद्र हमेशा से रूस रहा है, का विघटन आज से 34 साल पहले 1988 में शुरू हो गया था। इससे पहले तक सोवियत कितना बड़ा था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जहां उत्तर में इसकी सीमा आर्कटिक महासागर से लगती थी, तो वहीं इसके उत्तर में प्रशांत महासागर था। दक्षिण में यूएसएसआर की सीमाएं उत्तर कोरिया, मंगोलिया, चीन, अफगानिस्तान, ईरान और तुर्की तक से लगती थीं। सोवियत के दक्षिणी फ्रंटियर पर तीन सागर लगते थे- कैस्पियन, ब्लैक सी और अजोव का सागर। इसके अलावा पश्चिम में रोमानिया, हंगरी, चेकोस्लोवाकिया, पोलैंड, फिनलैंड और नॉर्वे यूएसएसआर से सीमा साझा करते थे।

सोवियत के टूटने के बाद स्वतंत्र हुए थे 15 देश

1988 में सोवियत के विघटन के शुरू होने के बाद सबसे पहले एस्टोनिया ने खुद को स्वायत्त घोषित किया। इसके बाद लिथुआनिया ने खुद को सोवियत से ही बाहर करने का एलान किया। कुछ समय बाद ही लातविया भी सोवियत संघ से अलग स्वतंत्र राष्ट्र बन गया। यूएसएसआर में मची इस टूट के दौरान अजरबैजान और अर्मेनिया आजाद होने वाले अगले राष्ट्र बना। 1991 के अंत तक बेलारूस और यूक्रेन भी सोवियत से आजाद हो गए। ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान और कजाखस्तान उन आखिरी देशों में थे, जिन्होंने 1992 में संघ की सदस्यता छोड़ने का फैसला किया। इसके अलावा जॉर्जिया, मॉलदोवा भी अलग गणतंत्र बने। यानी सोवियत संघ से कुल 15 स्वतंत्र राष्ट्र निकले थे। 

अब पुतिन की मंशा क्या?

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की शिकायत रही है कि सोवियत संघ से जो देश आजाद हुए थे, वह पश्चिमी देशों की तरह जीवनशैली अपनाकर या झुकाव रख आज रूस के लिए ही खतरा बनते जा रहे हैं। उन्होंने यूक्रेन पर हमले से पहले भाषण में यूक्रेन और रूस को सांस्कृतिक तौर पर एक जैसा करार दिया था और यूक्रेन की अलग पहचान को मानने से भी इनकार कर दिया था। इसी तरह क्रीमिया पर हमले से पहले भी उन्होंने इसे रूस का ही अभिन्न अंग बताकर इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था।

यानी पहले क्रीमिया और फिर यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद अब यही आशंका जताई जा रही है कि पुतिन धीरे-धीरे सोवियत संघ का हिस्सा रहे देशों पर प्रभाव बनाने में जुटे हैं। इसी कड़ी में उन्होंने बेलारूस के साथ शांति संधि की है, जबकि अजरबैजान, अर्मेनिया, कजाखस्तान, किर्गिस्तान और अन्य पड़ोसी देश अब तक रूस के प्रभाव में ही रहे हैं। यानी पुतिन का अगला लक्ष्य उन देशों को प्रभावित करने का है, जो उसके प्रभाव क्षेत्र से पूरी तरह बाहर जाकर पश्चिमी देशों के प्रभाव में पहुंच चुके हैं। 

कौन से देशों ने पश्चिमी देशों का साथ अपनाया, जिन्हें अब रूस से खतरा?

  • रूस से अलग होने वाले सभी देशों में जो देश पश्चिम के सबसे करीब आए हैं, उनमें यूक्रेन के अलावा एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया शामिल हैं। इन सभी देशों की सीमा रूस से लगती है। इसके अलावा रूसी साम्राज्य का हिस्सा रहे पोलैंड ने भी नाटो का दामन थाम लिया था।
  • गौर करने वाली बात यह है कि ऊपर जिन देशों का जिक्र है, उनमें सिर्फ यूक्रेन ही नाटो का हिस्सा नहीं रहा। बाकी चारों देश अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो गठबंधन का हिस्सा हैं। यानी नाटो संधि के तहत इनमें से किसी भी देश पर हमला होता है तो नाटो के 38 सदस्य देश दुश्मन के खिलाफ कार्रवाई के लिए बाध्य होंगे।
  • रूस ने इसी मौके का फायदा उठाते हुए सबसे पहले यूक्रेन पर हमला बोला है, जिसे नाटो में शामिल किए जाने पर बात चल रही थी। रूस का यह कदम नाटो में शामिल हुए सोवियत संघ के देशों के लिए भी खतरे की घंटी है। 
  • रूस से पैदा हुए इसी खतरे को लेकर एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया और पोलैंड ने चिंता जताई है। गुरुवार को बाल्टिक देशों की तरफ से नाटो संविधान के अनुच्छेद 4 के तहत एक बैठक बुलाई गई, जिसमें रूस के कदमों पर चर्चा हुई है।

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